प्याज की खेती कब और कैसे करें?

प्याज उगाने की उन्नत विधि

उन्नत प्रजातियाँ

एग्रीफाउण्ड डार्क रेड - यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गयी है। यह किस्म देश के विभिन्न प्याज उगाने वाले भागों में खरीफ मौसम में उगाने के लिए प्रयुक्त है। इस प्रजाति के शल्क गहरे लाल रंग के गोलाकार होते हैं, शल्के अच्छी प्रकार चिपकी होती हैं तथा मध्यम तीखापन होता है। फसल रोपाई के 60-100 दिनों में तैयार हो जाती है। पैदावार 250-300 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तथा कुल विलेय ठोस 12-13% तक होता है।

एग्रीफाण्ड लाईट रेड - यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रोिष्ठान द्वारा विकसित की गयी है। गांठे मध्यम आकार की गोलाकार तथ हल्के रंग की होती हैं। इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी है। रोपाई के 110-120 दिन बाद तैयार होती है। दावार 300-350 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है।

 

NHRDF रेड- 2 (लाईन-355 ) - यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गयी है। पौधे की ऊंचाई 55-64 से.मी. तथा पत्तियों की संख्या 6-11 तक पत्तियाँ सीधी एवं हरी होती है। शल्क का रंग हल्का लाल, गोलाकर तथा आकर्षक होता है। कन्द का व्यास 5-6 से.मी. कुल विलेय ठोस ( टी. एस. एस. ) 13-14% एवं 100-120 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। पैदावार 324-375 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है। यह प्रजाति भारत सरकार द्वारा हरियाणा, पंजाब, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र कर्नाटक तथा आंध प्रदेश में उगने के लिए संस्तुति की गयी है।

 

NHRDF रेड (लाइन- 28 ) - वह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के द्वारा विकसित की गयी है। पत्तियाँ गहरे हरे रंग की सीधी व हल्की मोम की परत लिए होती हैं। गाँठे गोलाकर, गहरे लाल रंग की होती है। गांठों का ऊपरी छिलका मोटा व 2/3 परल लाल रंग लिए हुए होता है। स्वाद मध्यम तीखा तथा टी.एस.एस. 13 से 14 प्रतिशत तक होता है। यह उत्तर, मध्य पश्चिमी भारत के लिए रबी मौसम में उगाने के लए उपयुक्त पायी गयी है. पैदावार 300-350 कु./ है. होती है।


एग्रीफाउण्ड व्हाईट - यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गयी है। शल्क कंदो का रंग आकर्षक सफेद, गोलाकार एवं बाह्यशल्क मजबूती से जुड़े हुये तथा व्यास 4-5.5 से.मी. होता है। कुल विलेय ढोस 15% होता है। भंडारण क्षमता मध्यम होती है। फसल रोपाई के 110-125 दिनों में तैयार हो जाती है। औसत उत्पादन 250-300 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होता है। यह प्रजाति रबी मौसम में उगाने के लिए एवं निर्जलीकरण के लिए बहुत उपयुक्त है।

NHRDF 3 (लाईन 652) - यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित की गयी है। शल्क कन्द गोलाकार लाल रंग तथा व्यास 5.5-6.5 से.मी. के होता है। कुल विलेय ठोस 12-14% होता है। भंडारण क्षमता बहुत अच्छी होती है। फसल रोपाई के 115 या 130 दिनों बाद तैयार हो जाती है। औसत उत्पादन 350 से 450 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है। यह प्रजाति महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा एवं बंगाल में उगाने के लिए उपयुक्त पाई गई है।

NHRDF रेड-4 (लाईन- 744) - इस प्रजाति को राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित किया गया है पौधा सीधा, पत्तियाँ गहरे हरे रंग की, सीधी होती है। कन्द लाल रंग के, आकार ग्लोबुलर, त्वचा कन्द से चिपकी एवं 5.5-6.50 से. मी. व्यास के होते है। पौध रोपण के 115-120 दिनों के कन्द तैयार हो जाता है । स्वाद मध्यम तीखा, कुल विलेय ठोस (12-14%) होता है। भंडारण क्षमता बहुत अच्छी होती है। औसत उत्पादन (350-400 कु./हे.) होता है। यह रबी मौसम के लिए जोन 3 के लिए अनुमोदित की गई है।

लाईन 553 - इस प्रजाति का विकास राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा समूह करण विधि द्वारा सन 2015 में किया गया है। इसमें कन्द गहरे लाल रंग के गोलाकार, धमकती त्वचा वाले तथा 4.50-550 से. मी. व्यास के होते है। पौध रोपण के 85-90 दिनों में कन्द बनकर तैयार हो जाता है। यदि इस प्रजाति की सीधे बीज की बुआई खेत में की जाये तो इसके बन्द लगभग 90-95 दिनों में तैयार हो जाते हैं। इसके कन्दों में कुल विलेस ठोस 12-13 प्रतिशत तथा शुद्ध पदार्थ 13-14% तथा औसत उत्पादन 300-325 कु./ है. तक होती है। इसके कन्दों की गुणवत्ता अधिक उचज एवं अगली फसल मिलने के कारण किसान इसे ज्यादा पसंद करते है। इस प्रजाति को खरीफ मौसम एवं अगेती खरीफ में उगाने के लिए सिफारिश की गई है।

NHRF फुरसंगी - यह प्रजाति राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के द्वारा विकसित की गयी है। इसे कंद लाल रंग के गोलाकार तथा कंद का व्यास 5.50-6.25 सेमी तक होता है। इस प्रजाति की फसल रोपाई के 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके कन्दों में कुल विलेय ठोस विलेय 12-14 प्रतिशत एवं शुष्क पदार्थ 13-14 प्रतिशत पाया जाता है। इसकी भण्डारण क्षमता उत्तम है। इस प्रजाति की औसत उपज 380-400 कु. प्रति हेक्टर है। यह प्रजाति स्टेमफीलियम एवं झुलसा रोग के प्रति सहनशील है। यह प्रजाति रबी मौसम में दिल्ली, रास्थान, हरियाणा, जम्मु कश्मीर, पंजाब, गुजरात एवं महाराष्ट्र के लिए अनुमोदित की गयी है।

बुवाई का समय - खरीफ प्याज के लिए बीज बुवाई पूरे जून के महीने में की जाती है। रवी प्याज के लिए मैदानी भागों में प्याज की बुवाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक की जानी चाहिए। पहाड़ों पर बुआई मार्च-अप्रैल में भी की जा सकती है।

बीज की मात्रा - एक हेक्टेयर की रोपाई के लिए 7 से 8 किलो बीज पर्याय होता है।

पौध तैयार करना- बीज को उँची उठी हुई क्यारियों में बोया जाता है क्यारियों की चौड़ाई 60 से 70 से. मी. तथा लम्बाई सुविधानुसार रखते है। वैसे 3 मीटर लम्बी क्यारियां सुविधाजनक होती है। 4-5 ग्राम बीज प्रति वर्ग मीटर की दर से बुआई करनी चाहिये जिससे स्वस्थ पौध तैयार होगी। यदि रोग लगने की सम्भावना हो तो बीज तथा पौधशाला की मिट्टी को कवकनाशी जैसे थाईरम केप्टन आदि से उपचारित करना चाहिए। 2-3 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के लिए पर्याप्त होती है। भूमि उपचारित करने के लिए 4-5 ग्राम दवा प्रति वर्ग मी. भूमि के लिए आवश्यक है। पौध तैयार करने वाली मिट्टी को बुवाई से 15-20 दिन पहले पानी देकर सफेद पोलिथीन से ढककर सोलाराईजेशन या बुआई के पहले टायकोडर्मा विरिडी कवक से उपचारित करने से भी आर्द्रगलन कम होती है। खरीफ में 6-7 सप्ताह तथा रबी में 8-9 सप्ताह में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। बीज को 5-6 से.मी. की दूरी पर कतारों में बोना चाहिए। बीज की बुवाई के बाद आधा से.मी. तक सड़ी तथा छनी हुई गोबर की खाद और मिट्टी से बीज को पूर्णतया ढक देते हैं। इसके बाद फव्वारे से हल्की सिंचाई करके क्यारियों को सूखी घास हटाकर सिंचाई फ्ववारे से करके पुनः क्यारियों को ढक दिया जाता है। पौधे को अधिक बरसात से बचाने के लिए सिरकी या नेट से ढकना प्याज के लिए उपयुक्त पाया गया है किन्तु खरीफ के मौसम में जैसे ही बरसात खत्म हो सिरकी या नेट को हटा देना चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि अगर सिरकी या नेट को हटाया नहीं जाता है तो आर्द्रगलन बीमारी का आक्रमण अधिक तापक्रम एवं नमी होने से अधिक होता है। फव्वारा सिंचन के विधि से प्याज की पौथ अच्छी तैयार कर सकते है।

 

पौध की रोपाई के लिए खेत की तैयारी - 2-3 जुताईयों करके खेत को अच्छी प्रकार से समतल बनाकर क्यारियों और नालियों में बांट देते हैं। फिर 25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से क्यारियों में अच्छी तरह से मिला देते हैं। रोपाई के एक दिन पूर्व 200 कि.ग्रा. केल्शियम अमोनियम नाइटेट या 100 कि.ग्रा. यूरिया 400 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट 100 कि.ग्रा. म्युरेट ऑफ पोटाश तथा 20-30 किलो बेटोनाई सल्फर 10 से 12 किलो पी. एस. बी की प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाकर क्यारियाँ को पुनः सततल बना देते है। करनाल (हरियाणा) क्षेत्र के लिए 150 कि.ग्रा. युरिया या 300 कि.ग्रा. यूरिया या 300 कि. किसान खाद 500 किलो सुपर फॉस्फेट तथा रबी मौसम में 150 किलो यूरिया या 300 किलो ग्राम किसान खाद 250 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 85 किलो म्युरेट ऑफ पोटास सबसे उपयुक्त पाया गया है।

 

खाद एवं उर्वरक - पोषक तत्वों की मात्रा मुख्यः मिट्टी के प्रकार क्षेत्र एवं मुख्य पोषक तत्वों के किसी फल द्वारा उपयोग निर्भर करता है। 20-25 टन हेक्टेयर गोबर की खाद पर्याप्त होती है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान प्याज के लिए 100:50:50:60 कि.ग्रा. नाईटोजन एवं सल्फर पोटाश देने कि सिफारिश की गई है। गोबर की खाद के एक माह पहले तथा फास्फोरस पोटोश एवं सल्फर की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा रोपाई के ठिक पहले मिट्टी में डालकर मिलाना चाहिए। शेष नत्रजन रोपाई के 30 दिन तथा 45 दिन बाद दो बार में खड़ी फसल में देते हैं। गांठे बनना शुरू होने से पहले खड़ी फसल में खाद देनी चाहिए। यदि देर से खाद दी गई तो गर्दन मोटी हो जाती है तथा जुड़वा गांठे अधिक निकल आती है। रासायनिक उर्वरकों के अतिरिक्त सुक्ष्म पोषक तत्व भी प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए उपयोगी पाए गए है। इस प्रतिष्ठान अनुसंधान द्वारा सुक्ष्म तत्वों के प्रयोग से यदि जिंक 4.2 और 3 पी. पी. एम की दर से देते हैं तो पैदावार बढ़ती है और कुल विलेय ठोस शर्करा एवं एस्काटीक अम्ल बढ़ने से गुणवत्ता में सुधार होता है।

 

पौध की रोपाई - खरीफ में रोपाई अगस्त के प्रथम पक्ष में करते हैं। रबी के लिये 15 दिसम्बर से 15 जनवरी उत्तम समय है। रोपाई करते समय कतारों की दूरी 15 से.मी. तथा कतार में पौधे की दूरी 10 से. मी. में रखते हैं। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करना अत्यंत आवश्यक होता है अन्यथा 100% तक हानि हो सकती है। खरीफ में प्याज की रोपाई के लिए ऊँची उठी क्यारियां बनानी चाहिए। रोपाई से पूर्व पौधों की जड़ों को 0.1% कार्बेन्डाजिम + 0.1% कार्बोसल्फान के घोल में डूबोकर लगाने से पौधे स्वस्थ रहते हैं।

 

फसल की देखभाल - अच्छी फसल के लिए 2-3 बार शुरू में खरपतवार निकालना आवश्यक होता है। खरपतवार नाशक दवा का भी प्रयोग किया जा सकता है। गोल 1 लीटर या स्टॉम्प 3.5 लीटर प्रति हेक्टयर रोपाई के तीन दिन बाद या रोपाई के ठीक पहले 800 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करने से खरपतवार खत्म करने में मदद मिलती है। रोपाई के 120-25 दिन बाद गोल 2 मि.ली. तथा टरगा सुपर मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से खरपतवार पर नियंत्रण मिलता है। खरपतवार नाशक दवा डालने पर भी 40- 45 दिनों के बाद एक बार खरपतवार हाथ से निकालना आवश्यक होता है। सिंचाई समय पर आवश्यकतानुसार करते है। जाड़ों में सिंचाई लगभग 8-10 दिनों के अन्तर पर करते हैं परंतु गर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई आवश्यक होती है। जिस समय गांठे बढ़ रही है उस समय सिंचाई जल्दी करते हैं। पानी की कमी के कार ण गांठे अच्छी तरह से नहीं बढ़ पाती और इस तरह से पैदावार में कमी हो जाती है। प्याज की फसल ड्रिप सिंचाई तथा स्प्रिंकलर पद्धति पर अच्छी तरह से ली जा सकती है।

 

खड़ी फसल में खाद देना (टॉपडेसिंग) - रोपाई के चार सप्ताह बाद मूरिया की बच्ची आधी मात्रा को दो भागों में बांटकर 30 दिन और 45 दिन बाद किया विधि से मिला देते है H । यदि किसान खाद का प्रयोग किया जाता है तो खाद डालने के बाद सिंचाई करना चाहिए परन्तु यदि यूरिया सिंचाई के बाद देते हैं। यूरिया डालने से पहले खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। 150 किलो यूरिया या 300 किलो खाद करनाल क्षेत्र के लिए उपयुक्त पायी गयी है। यदि मृदा हल्की किस्म की है तो उपरोक्त खाद की मात्रा दो भागों में रोपाई के 30 औरी 45 दिन के अन्तर पर देना चाहिए। रोपाई के 1545 दिन बाद 0.2% सायटोजाइम का प्रयोग उपयुक्त पाया गया है। पैदावार बढ़ाने के लिए जस्त ताम्र और बोरोन जैसे सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग भी उपयुक्त होता है। प्याज में अच्छी पैदावार के लिए गंधक देना चाहिए खाद देते समय 30 या 40 कि. प्रति हेक्टेयर गंधक या 15 दिन के अन्तराल पर 3-4 बार 1% गंधक का छिड़काव करना चाहिए।

 

पौध संरक्षण - बैगनी धब्बा तथा स्टेमफिलियम झुलसा रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेबी 2.5 ग्राम अथवा क्लोरोथेलोलीन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10-15 दिनों के अन्तर पर छिड़काव करें। छिड़कने वाले घोल में चिपकने वाली दवा अवश्य मिलायें। उपरोक्त कीट एवं बीमारीयों में दोनों दवाएँ एक साथ मिलाकर छिड़क सकते है। प्याज खोदने के 10 दिन पूर्व छिड़काव बंद कर देना चाहिए। करनाल क्षेत्र (हरियाणा) में पाँच दिन खेत में सुखाने तथा पांच दिनों तक छाया में सूखाकर टापसिन एम 0.1% तथा स्टेप्टोसाइक्लिन 0.02% के छिड़काव (गर्दन काटने के बाद) करने से भण्डारण की बीमारियों की रोकथाम करने में अच्छा परिणाम प्राप्त हुआ है। खुदाई से 1020 दिन पहले 0.1% कार्बन्डेझिम + स्टेप्टोसाईक्लिन 0.02% का छिडकाव करने से भण्डारण में हानि कम होती है।

 

फसल को थ्रिप्स कीड़े से बचाने के लिए डेल्टामेथ्रिन 1 मि.ली. + फिप्रोनिल 1 मि.ली./कार्बोसल्फान 1 मि.ली. / प्रोपेनोफॉस 2 मि.ली / लम्बडा सायहॅलोथ्रीन 1 मि.ली. प्रति लीटर दर से छिड़काव करना चाहिए। छिड़कने वाले घोल में चिपकने वाले दवा जैसे सॅण्डोविट 0.06% की दर से अवश्य मिलाये साथ में नीमयुक्त कीटनाशकों का प्रयोग उपयुक्त होता है। पौध को आद्रगलन बिमारी से बचाने के लिए बीज को 0.2% थायरम से उपचारीत कर लेना चाहिए। यदि बिमारी का प्रकोप बीज की बुआई के बाद होता है तो 0.2% थायरम में घोल में नम कर देना चाहिए।

 

खुदाई एवं प्याज का सुखाना - खरीफ फसल को तैयार होने में बुआई में लगभग 5 माह लग जाते हैं क्योंकि गांठे नवम्बर में तैयार होती है इस समय तापमान काफी कम होता है।. पौधे पूरी तरह से सूख नहीं पाते इसलिए जैसे ही गांठे अपने पूरे आकार की हो जायें एवं उनका रंग लाल हो जाय, करीब 10 दिन खुदाई से पहले सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए। इससे गांठे सुडौल एवं ठोस हो जाती हैं तथा उनकी वृद्धि रूक जाती है। जब गांठे अच्छी आकार की होने पर भी खुदाई नहीं की जाती तो वे फटना शुरू कर देती है। खुदाई करके इनको कतारों में रखकर सुखा देते हैं। पत्ती को गर्दन से 2.5 से.मी. ऊपर से अलग कर देते है और फिर एक साप्ताह तक सुखा लेते है। सुखाते समय सड़े हुए, कटे हुए, दो-फाड़े, फूलों के डंठल वाली एवं अन्य खराब की गांठे निकाल देते है।

 

भंडारण में सड़न कम करने हेतू प्याज खुदाई से 10 से 20 दिन पहले 0.1% वावीस्टीन (कार्बाडोजिम) का स्प्रे करें। पत्तियों सहित धूप में सुखाने तथा सूखी पत्तियों सहित भण्डार में क्षति कम होती है। रबी फसल पकने पर जब प्याज की पत्तियाँ सूखकर गिरने लगें तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए और पन्द्रह दिन बाद खुदाई कर लें। आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर प्याज के कन्दो की भण्डारण क्षमता कम हो जाती है। यदि भूमि सख्त न हो गांठो का हाथों से भी उखाड़ा जा सकता है। 50% पत्तियाँ जमीन पर गिरने से एक सप्ताह बाद खुदाई करने से भण्डारण में होने वाली हानि कम होती है। प्याज के कन्दो को भण्डार में रखने से पहले सुखाने के लिए प्याज को छाया में जमीन पर फैला देते है। सुखाते समय कन्दो की सीधी धूप तथा वर्षा से बचाना चाहिए। सुखाने की अवधि मोसम पर निर्भर करती है। गांठो को अच्छी तरह सुखाने के लिए 3 दिन खेत में तथा एक सप्ताह छाये में सुखाने के बाद 2- 2.5 से.मी. छोड़कर पत्तियाँ काटने से भण्डारण में हानि कम होती है। सुखाते समय कटे हुए, जुड़वा डण्ठल वाली पुष्प तथा मोटे गर्दन के कन्दो के, डण्ठल तथा मोटे गर्दन के कन्दों को अलग कर देते हैं क्योंकि ये भण्डारण में खराब हो सकती है। करनाल (हरियाणा) में बिन्डरों तरीके से सुखाने के बाद 10 दिनों तक छाया में सुखाकर 2.5 से.मी. गर्दन छोड़कर पत्तियाँ काटकर भण्डारण करने सब सबसे कम प्याज सड़ी तथा भण्डारण में कम से कम कुल हानि पायी गई।

 

उपज - खरीफ 200-250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर औसत उपज हो जाती है तथा रबी में 300-350 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्याज कन्दो की पैदावार हो जाती है।