घन जीवामृत का परिचय –
घनजीवामृत एक जीवामृत का ही एक रूप है इसमें जीवामृत को गोबर में मिक्स करके कुछ समय के लिये छावं में ढक कर छोड़ दिया जाता है जिससे करोडो की संख्या में जैविक जीवाणु इसमें अच्छी तरह से पनप कर फैल जाते है इसमें जीवाणु अत्यंत ही सूक्ष्म अवस्था में होते हैं।
घन जीवामृत बनाने का तरीका -
घन जीवामृत बनाने
के लिए आवश्यक सामग्री जिसकी आप को आवश्यकता होगी।
Ø
100 किलो के लगभग देशी गाय का गोबर
Ø
5 किलो के लगभग गुड़ की मात्रा
Ø
2 किलोग्राम दाल का बेसन
Ø
5 किलो के लगभग गोमूत्र
Ø 1 किलो पीपल के नीचे की नरम मिटटी
घन जीवामृत बनाने कि विधि -
Ø
इन सब चीजों को आप एक जगह इकठ्ठा कर लें और
किसी अच्छी जगह पर 100 किलो गोबर को ढेर कर ले इसमें 1 किलो नरम मिटटी और 2 किलोग्राम दाल का बेसन, 5
किलोग्राम गुड़ को अच्छी तरह गौमूत्र में मिला कर गोबर में छिड़काव कर दे और सब को
अच्छी तरह से मिक्स कर लेना चाहिये अब इस घन जीवामृत को किसी छायादार स्थान पर
फैलाकर किसी कपडे या पॉलीथिन से ढक दें।
Ø सूखने के बाद घन जीवामृत को छोटे टुकड़ो में पीस कर किसी बेग में या बोरी में भर कर रख ले अब इसे 6 महीने तक किसान उपयोग में ले सकता है।
घन जीवामृत को कैसे काम में लें -
Ø
घन जीवामृत को भी जीवामृत की तरह कभी भी काम
में ले सकते हैं इसे भी खेत की बुवाई के समय खेत में डाल सकते है। इसको जब भी डालें तब खेत
में नमी होनी चाहिये,
घन जीवामृत में करोडो जीवाणु सुसुप्तावस्था में होते है।
Ø खेत में डालने के बाद यह जीवाणु अनुकूल परिवेश के कारण फैलने लगते हैं जीवामृत को फसल की बुवाई के साथ भी डालते है। मशीन से बुवाई करते समय एक पाइप में बीज और एक पाइप में घन जीवामृत दे सकते है। इसमें मशीन में दोनों को मिक्स करके भी बुआई कर सकते है।
घन जीवामृत उपयोग करने के लाभ -
Ø
पोधो में फलो और फूलो की मात्रा को बढ़ाता है।
Ø
पौधे के सम्पूर्ण विकास में सहायक है।
Ø
बीज की अंकुरण श्रमता ( बीज उगने के प्रतिशत ) को बढ़ाते है।
Ø
यह पौधे की रोग प्रतिरोधक श्रमता को मजबूत
करता है।
Ø
पौधे को सर्दी और गर्मी से बचाने में सहायक है।
Ø
मिटटी की ताकत को बढ़ाता है।
Ø
जीवामृत सभी तरह की फसलों के लिए लाभकारी है।
Ø
जीवामृत के उपयोग से तैयार फसलों का स्वाद
और गुणवत्ता बेहतर होती हे रासायनिक की तुलना में जीवामृत के उपयोग से पैदावार में
वर्द्धि होती हे और पौधे एकसमान आकार के होते है।
Ø
इसके खेती में कोई भी साइड इफेक्ट (
नकारात्मक प्रभाव ) नहीं होते है।
Ø
पौधे में फंगस रोग को रोकता ( प्रभाव को कम
करता ) है।
Ø
कुछ सालो बाद भूमि पर यह प्रभाव बढ़ता है।
Ø
जीवामृत के लगातार उपयोग से खेत की भौतिक ,कार्बनिक
, जैविक , रासायनिक प्रभाव में बदलाव
होता हे मिटटी की कार्बनिक क्षमता में सुधार होने लगता है।
Ø
जब लगातार प्रयोग होता रहता है तो भूमि में
केचुआ की मात्रा सूक्ष्म जीवो की मात्रा में बढ़ोतरी होती है।
Ø जीवामृत से भूमि की उपजाव श्रमता में बढ़ोतरी होती है।
अब जो समय है उसके
अनुसार किसानो को जैविक खेती की और अवश्य बढ़ना चाहिए, रासायनिक
खादों की मात्रा को कम करते रहना चाहिये धीरे–धीरे जैविक खाद की मात्रा को बढ़ाते
रहना चाहिये जीवामृत खेत में पढ़े हुये कचरे को पकाने और गलाने में सहायक होता है। जीवामृत के उपयोग से खेत
में केचुओं की संख्या बढ़ोतरी होती है।
केचुओं द्वारा तैयार खाद में मिटटी की तुलना में नाइट्रोजन में सात गुना, फास्फोरस में नो गुना, पोटास ग्यारह गुना, कैल्शियम छः गुना ज्यादा होता है।