जीवामृत एक
प्राकृतिक तरल उर्वरक है । इसे पानी , गोबर ( खाद के रूप में ) और
गायों के मूत्र को उसी क्षेत्र की कुछ मिट्टी के साथ मिलाकर बनाया जाता है जहां
बाद में खाद डाली जाएगी। फिर रोगाणुओं के विकास को गति देने के लिए भोजन में
मिलाया जाता है : गुड़ या आटे का उपयोग किया जा सकता है।
जीवामृत का उपयोग भारतीय किसानों द्वारा सदियों से किया जाता रहा है, जो 2000 के दशक में पुनर्जीवित होने से पहले कुछ समय के लिए उपयोग से बाहर हो गया था।
जीवामृत कोई खाद नहीं है। यह तो असंख्य सूक्ष्म जीवाणुओं का एक विशाल भंडार है। ये सूक्ष्म जीवाणु, जमीन में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्वों को पौधों के लिए उपलब्ध अवस्था में बदलकर इन्हें प्रयोग में लाने योग्य बनाते हैं। दूसरे शब्दों में ये सूक्ष्म जीवाणु भोजन बनाने का कार्य करते हैं। अतः जीवामृत अनंत करोड़ लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं का सर्वोत्तम जामन है।
जीवामृत के लाभ -
Ø
पौधे को जरूरी पोषक तत्वों की उपलब्धता
करना।
Ø
भूमि में सूक्ष्म जीवाणुओं और मित्रकीटों की
संख्या में वृद्धि करना।
Ø
फल-सब्जी के पौधों की बढ़वार को बढ़ाने के
साथ गणवत्ता को बेहतर करता है।
Ø
भूमि की उर्वरा शक्ति को बेहतर करता है।
Ø खट्टी लस्सी के साथ जीवामृत के घोल को रोगनाशी दवाई के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
सामग्री -
Ø
पानी 40 ली०
Ø
देशी गाय का मूत्र 2
लीटर
Ø
देशी गाय का गोबर 2
किलोग्राम
Ø
गुड़ या मीठे फलों का गूदा 200
ग्राम
Ø
बेसन या किसी दलहन का आटा 200
ग्राम
Ø
खेत के मेड़ या जंगल की मिट्टी 5
ग्राम (1 चुटकी)
विधि -
Ø
एक ड्रम में 40 लीटर पानी डालकर और
फिर बारी-बारी से इसमें पहले देसी गाय का गोबर फिर गोमूत्र, गुड़,
बेसन और मिट्टी को ऊपर दी गई तय मात्रा में डाल दें।
Ø
लकड़ी के डंडे से इस सारी सामग्री को घड़ी
की सुई की दिशा में 2-3 मिनट तक घोलें। बाद में इसे जूट की बोरी के साथ ढ़क दें।
Ø
अब हम इस तैयार घोल को रोजाना 3
दिन तक सुबह-शाम 2-3 मिनट के लिए घड़ी की सुई की दिशा में
घोलते रहेंगे।
Ø
3
दिन के बाद तैयार जीवामृत को सूती कपड़े से छानकर किसी घड़े या ड्रम
में भंडारण करें। यदि इसे ड्रीप या स्प्रींकलर विधि से प्रयोग करना है तो 2
बार छानकर रखें।