कोदो फसल हेतु उन्नत कृषि तकनीक
किसान भाई यदि नीचे उल्लेखित अनुसार कृषि कार्यमाला अपनाते हैं तो उन्हें उत्तम उत्पादकता प्राप्त होगी।
भूमि का चयन :- इस फसल हेतु हल्की भूमि उपयुक्त होती है । जिसमे पानी का निकास अच्छा हो।
बोनी का समयः- कोदो फसल की बुआई मानसून प्रारंभ होते ही जून-जुलाई में कर देना चाहिए । समय पर बोआई करने से उपज अधिक प्राप्त होती है। रोग एवं कीट का प्रकोप भी कम होता है । विलंब से बोनी की दशा मे शीघ्र पकने वाली किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।
भूमि की तैयारी:- गर्मी में दो बार जुताई कर एवं कम से कम एक बार पाटा लगाकर मिट्टी के ढेलों को फोड़कर खरपतवार आदि निकालकर बोवाई करना चाहिए।
कोदो की मुख्य किस्में:-
प्रजाति |
पकने की अवधि |
उत्पादन/हेक्टेयर |
विशेषता |
जवाहर कोदो – 41 |
90-100 |
18 से 20 कु० (पथरीली भूमि में
10-12 कु०) |
पकने तक हरी रहती
है |
जी०पी०यू० – 03 |
90-100 |
18 से 20 कु० |
हल्की पथरीली भूमि
हेतु उपयुक्त |
इंदिरा कोदो – 01 |
100-105 |
22 से 25 कु० |
स्मट एवं तनामक्खी
हेतु सहनशील |
जवाहर कोदो – 48 |
90-105 |
20 से 22 कु० |
हल्की भूमि हेतु
उपयुक्त |
बीज की मात्रा :- शोध परिणामों के आधार पर कोदो की बुवाई कतारों मे करने से 11 से 17. प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त होती है, कतारों मे बोवाई करने के लिए 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टर तथा छिटकवां बुवाई के लिये 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है। बीज बोने के पहले बीज को 2.5 ग्राम थायरम दवा प्रति किलो बीज की दर से अवश्य उपचारित करना चाहिए।
संतुलित उर्वरक उपयोग:- कोदो के लिए 20 किलो ग्राम नत्रजन 20 किलोग्राम स्फूर तथा 10 किलोग्राम पोटाश अवश्य देना चाहिए । नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फूर व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा बोनी के 3 से 4 सप्ताह के अंदर निदांई पश्चात् देना चाहिए। सुखे की स्थिति में 5 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव दो बार करके उपज में बढ़ोतरी की जा सकती है।
अंतःकर्षण कियाएं :- निराई गुड़ाई का लघु धान्य फसलों की उपज पर विषेष प्रभाव पड़ता है, बुवाई के लगभग 30 वें एवं 45 दिन में निराई गुड़ाई अवश्य करना चाहिए, जहां पौधे न उगे हों अधिक घने वाले स्थान से पौधे निकाल कर 15 से 25 दिन के अंदर रिमझिम वर्षा की स्थिति मे रोपाई करना चाहिए ।
रोग नियंत्रणः- कंडुआ (स्मट) कोदो की फसल को बुरी तरह प्रभावित करता है। बालियां एवं दानें पर काले रंग की फुरफूंदी दिखाई देती है।
उपचारः- बीजों को उपचारित करके बोयें । रोग का प्रभाव होने पर प्रभावित बालियों को निकालकर जला देवें।
विशेष सावधानियां :-
1. बुवाई हेतु
बीज कय करने के तत्काल बाद क्रय की गई बीज की मात्रा से कुछ बीज निकाल कर भौतिक
शुद्धता एवं कुछ मात्रा में या 100 दाने बीज लेकर अंकुरण का परिक्षण कृषक
स्वयं अपने स्तर से कर लेवें। यदि बीज उपयुक्त प्रतीत नही होता है तो तत्काल वापस
कर बीज विक्रय केन्द्र से दूसरा बीज प्राप्त कर लिया जावे ।
2. बुवाई के
उपरांत बीज के अंकुरण में कमी पाये जाने की स्थिति में तत्काल एक सप्ताह के भीतर
संबंधित जिला कृषि अधिकारी से सम्पर्क करें ताकि बुवाई की पद्धति, समय
एवं खेत की स्थिति का अवलोकन किया जा सके।
3. किसी भी बीज के बुवाई से पूर्व अनिवार्य रूप से बीजों को उपचारित कर लिया जावे ।
अधिक जानकारी के लिये कृषि विभाग या निकटतम कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क करें ।